पुनर्जागरण तुर्क, साम्राज्य/ उस्मानी साम्राज्य, काली मौत : यूरोप के इतिहास का एक अध्याय, मंगोल साम्राज्य, रोमन साम्राज्य, - Study Search Point

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पुनर्जागरण तुर्क, साम्राज्य/ उस्मानी साम्राज्य, काली मौत : यूरोप के इतिहास का एक अध्याय, मंगोल साम्राज्य, रोमन साम्राज्य,

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पुनर्जागरण : 'रिनैशां' का अर्थ 'पुनर्जन्म' -
'रिनैशां' का अर्थ 'पुनर्जन्म' होता है। मुख्यत: यह यूनान और रोम के प्राचीन शास्त्रीय ज्ञान की पुन:प्रतिष्ठा का भाव प्रकट करता है। यूरोप में मध्ययुग की समाप्ति और आधुनिक युग का प्रारंभ इसी समय से माना जाता है। इटली में इसका आरंभ फ्रांसिस्को पेट्रार्क (1304-1367) जैसे लोगों के काल में हुआ, जब इन्हें यूनानी और लैटिन कृतियों में मनुष्य की शक्ति और गौरव संबंधी अपने विचारों और मान्यताओं का समर्थन दिखाई दिया। 1453 में जब कांस्टेटिनोपिल पर तुर्कों ने अधिकार कर लिया, तो वहाँ से भागनेवाले ईसाई अपने साथ प्राचीन यूनानी पांडुलिपियाँपश्चिम लेते गए। इस प्रकार यूनानी और लैटिन साहित्य के अध्येताओं को अप्रत्याशित रूप से बाइजेंटाइन साम्राज्य की मूल्यवान् विचारसामग्री मिल गई। पुनर्जागरण या रिनैंसा यूरोप में मध्यकाल में आये एक संस्कृतिक आन्दोलन को कहते हैं। यह आन्दोलन इटली से आरम्भ होकर पूरे योरप में फैल गया। इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है।

➤ इस सांस्कृतिक आन्दोलन में परम्परागत स्रोतों (मुख्यतः लैटिन एवं ग्रीक) से ज्ञानार्जन ने जोर पकड़ा।
➤ शिक्षा में क्रमश: किन्तु सर्वव्यापी सुधार हुआ जिससे लोगों की संसार के चीजों की समझ में आमूल परिवर्तन आया।
➤ पेंटिंग में रेखीय परिदृष्य (लिनियर परस्पेक्टिव) का विकास हुआ। पुनर्जागरण कला के विभिन्न विधाओं के विकास के लिये विशेष रूप से जाना जाता है।
➤ क्रमशः तकनीकी का विकास, पशुपालन का विकास, कृषि का विकास
इटालवी पुनर्जागरण में साहित्य की विषयवस्तु की अपेक्षा उसके रूप पर अधिक ध्यान दिया जाता था। जर्मनी में इसका अर्थ श्रम और आत्मसंयम था, इटालवियों के लिए आराम और आमोद-प्रमोद ही मानवीय आदर्श था। डच और जर्मन कलाकारों, ने जिनमें हाल्वेन और एल्बर्ट ड्यूरर उल्लेखनीय हैं, शास्त्रीय साहित्य की अपेक्षा अपने आसपास दैनिक जीवन में अधिक रुचि प्रदर्शित की। वैज्ञानिक उपलब्धियों के क्षेत्र में जर्मनी इटली से भी आगे निकल गया। मैकियावेली की पुस्तक "द प्रिंस" में राजनीतिक पुनर्जागरण की सच्ची भावना का दर्शन होता है। रॉजर बेकन ने अपनी कृति "सालामन्ज हाउस" में पुनर्जागरण की आदर्शवादी भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की है। ज्योतिष शास्त्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और गणित, भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा, जीवविज्ञान और सामाजिक विज्ञानों में बहुमूल्य योगदान हुए। कार्पनिकसने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घुमती है और अन्य ग्रहों के साथ, जो स्वयं अपनी धुरियों पर घूमते हैं, सूर्य की परिक्रमा करती है। केप्लर ने इस सिद्धांत को अधिक स्पष्ट करते हुए कहा कि पृथ्वी तथा अन्य ग्रह सूर्य के आसपास वृत्ताकार पथ के बजाय दीर्घवृत्ताकार पथ पर परिक्रमा करते हैं। एक ओर साहित्य पुरातत्ववेदी प्राचीन ग्रीक और लैटिन लेखकों की नकल कर रहे थे, दूसरी ओर कलाकार, प्राचीन कला के अध्येता प्रयोगों में रुचि ले रहे थे और नई पद्धतियों का निर्माण कर कुछ सुप्रसिद्ध कलाकार जैसे लिओनार्दो दा विंची औरमाइकल एंजेलो नवोदित युग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लिओनार्दो दा विंची मूर्तिकार, वैज्ञानिक आविष्कारक, वास्तुकार, इंजीनियर, बैले (Ballet) नृत्य का आविष्कारक और प्रख्यात बहुविज्ञ था। इतालवियों ने चित्रकला में विशेष उत्कर्ष प्रदर्शित किया। यद्यपि प्रयुक्त सामग्री बहुत सुंदर नहीं थी, तथापि उन चित्रकारों की कला यथार्थता, प्रकाश, छाया और दृश्य-भूमिका की दृष्टि से पूर्ण हैं। द विंसी और माइकेल एंजेलो के अतिरिक्त राफेल इटली के श्रेष्ठ चित्रकार हुए हैं। ड्यूयूरेस और हालवेन महानउत्कीर्णक हुए हैं। मूर्तिकला, यूनानी और रोमनी का अनुसरण कर रही थी। लारेंजों गिवर्टी चित्रशिल्पी पुनर्जागरणकालीन शिल्पकला का प्रथम महान अग्रदूत था। यूनानी और रोमनी साहित्य का अनुशीलन, पुनर्जागरण का मुख्य विशेषता थी। प्रत्येक शिक्षित यूरोपवासी के लिए यूनानी औरलैटिन की जानकारी अपेक्षित थी और यदि कोई स्थानीय भाषा का प्रयोग करता भी था, तो वह उसे क्लैसिकल रूप के सदृश क्लैसिकल नामों, संदर्भों और उक्तियों को जोड़ता और होमर, मैगस्थनीज़, वरजिल या सिसरो के अलंकारों, उदाहरणों से करता था। क्लेसिसिज्म के पुनरुत्थान के साथ मानववाद की भी पनपा। मानववाद का सिद्धांत था कि लौकिक मानव के ऊपर अलौकिकता, धर्म और वैराग्य को महत्व नहीं मिलना चाहिए। मानवबाद ने स्वानुभूति और पर्यावरण के विकास अंत मेंव्यक्तिवाद को जन्म दिया।  अब यह व्यापक रूप से मान्य है कि सामाजिक और आर्थिक मूल्यों ने व्यक्ति की जीवनधारा को मोड़ते हुए इटली और जर्मनी में एक नए और शक्तिशाली मध्यवृत्तवर्ग को जन्म दिया और इस प्रकार बौद्धिक जीवन में एकक्रांति पैदा की। पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन के विषय में चर्चा करते हुए साइमों ने इन दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध सिद्ध किया; किंतु लार्ड ऐक्टन ने साइमों की आलोचना करते हुए दोनों की मूल भावना के बीच अंतर की ओर संकेत किया। दोनों आंदोलन प्राचीन पंरपराओं से प्रेरणा करते थे और नए सांस्कृतिक मूल्यों का निर्माण करते थे।
यूरोप में मध्यकाल में आए सांस्कृतिक आंदोलन को पुनर्जागरण कहते हैं! यह आंदोलन इटली से आरंभ होकर पूरे यूरोप में फैल गया! इस आन्दोलन का समय चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी तक माना जाता है! पुनर्जागरण का अर्थ पुनर्जन्म होता है! मुख्यत: यह यूनान और रोम के प्राचीन शास्त्रीय ज्ञान की पुन:प्रतिष्ठा का भाव प्रकट करता है! यूरोप में मध्ययुग की समाप्ति और आधुनिक युग का प्रारंभ इसी समय से माना जाता है! इटालवी पुनर्जागरण में साहित्य की विषयवस्तु की अपेक्षा उसके रूप पर अधिक ध्यान दिया जाता था! जर्मनी में इसका अर्थ श्रम और आत्मसंयम था, इतालवियों के लिए आराम और आमोद-प्रमोद ही मानवीय आदर्श था! पुनर्जागरण के दौरान ज्योतिष शास्त्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और गणित, भौतिकी, रसायन शास्त्र, चिकित्सा, जीवविज्ञान और सामाजिक विज्ञानों में बहुमूल्य योगदान हुए! रॉजर बेकन ने अपनी कृति "सालामन्ज हाउस" में पुनर्जागरण की आदर्शवादी भावना को अभिव्यक्ति प्रदान की है! 
पुनर्जागरण से जुड़े तथ्‍य इस प्रकार हैं : -
➤ धर्म-सुधार आंदोलन का प्रवर्तक! पुनर्जागरण की शुरुआत इटली के फ्लोरेंस नगर में हुई थी! पुनर्जागरण का अग्रदूत इटली के महान कवि दांते (1260-1321 ई.) थे! दांते का जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में हुआ था! दांते ने प्राचीन लैटिन भाषा छोड़कर तत्कालीन इटली की बोलचाल की भाषा टस्कन में टिवाइन कॉमेडी नामक काव्य लिखा! इसमें दांते ने स्वर्ग और नरक की एक काल्पनिक यात्रा का वर्णन किया है! दांते के बाद पुनर्जागरण को आगे ले जाने वाला दूसरा व्यक्ति पेट्रॉक (1304-1367) था! मानववाद का संस्थापक पेट्रॉक को माना जाता है. पेट्रॉक इटली का रहने वाला था! इतालियन गद्य का जनक कहानीकार बोकेशियो (1313-1375 ई.) को माना जाता है! बोकेशियो की प्रसिद्ध पुस्ताक डेकामेरॉन है! आधुनिक विश्व का पहला राजनीतिक चिंतक फ्लोरेंस निवासी मैकियावेली (1469-1567 ई.) थे!
➤ मैकियावेली की द प्रिंस किताब राज्य की एक नई तस्वीर दिखाती है! पुनर्जागरण की भावना की पूर्ण अभिव्यक्ति इटली के तीन कलाकारों लियोनार्दो द विंची, माइकल एंजलो और राफेल की कृतियों में मिलती है! लियोनार्दो द विंची एक बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति था. वह चित्रकार, मूर्तिकार, इंजीनियर, वैज्ञानिक, दार्शनिक, कवि और गायक था!  द लास्टं सपर और मोनालिसा नामक अमर चित्रों को बनाने वाले लियोनार्दो द विंची थे! द लास्ट जजमेंट और द फॉल ऑफ मैन माइकल एंजलो की कृतियां हैं! सिस्तान के गिरजाघर की छत पर माइकल एंजलो ने चित्र बनाए थे! राफेल भी इटली का एक चित्रकार था. जीजस क्राइस्ट की मां मेडोना का चित्र राफेल की कृति है! पुनर्जागरण काल में चित्रकला का जनक जियाटो को माना गया है! पुनर्जागरण काल के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार फ्रांसिस बेकन थे! पुनर्जागरण काल के सर्वश्रेष्ठ निबंधकार फ्रांसिस बेकन इंगलैंड के रहने वाले थे।
➤ द प्रेज ऑफ फौली पुस्तक में पादरियों के अनैमिक जीवन और इसाई धर्म की कुरीतियों पर व्यंग्य किया गया है1 इरासमस ने द प्रेज ऑफ फौली लिखी! द प्रेज ऑफ फौली लिखने वाले इरासमस हॉलैंड के रहने वाले थे! अपनी पुस्तक यूटोपिया के माध्यम टॉमस मूर ने आदर्श समाज का चित्र प्रस्तुत किया था! टॉमस मूर इंगलैंड के रहने वाले थे! मार्टिन लूथर ने जर्मन भाषा में बाइबल का अनुवाद प्रस्तुत किया है! रोमियो एंड जूलिएट शेक्सपीयर की अमर कृति है! शेक्सोपीयर इंगलैंड के रहने वाले थे! इंग्लैड के रोजर बेकर को आधुनिक प्रयोगात्मक विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है! पृथ्वी सौरमंडल का केन्द्र है इसका खंडन सर्वप्रथम पोलैंड निवासी कोपरनिकस ने किया।
गैलीलिओ (1560-1642 ई.) ने भी कोपरनिकस के सिद्धांत का समर्थन किया! जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक केपला या केपलर (1571-1630 ई.) ने गणित की सहायता से यह बतलाया कि ग्रह सूर्य के चारों ओर किस प्रकार घूमते हैं! न्यूटन (1642-1726 ई.) ने गुरुत्वाकर्षण के नियम का पता लगाया! धर्म-सुधार आन्दोलन की शुरुआत 16वीं सदी में हुई! धर्म-सुधार आन्दोलन का प्रवर्तक मार्टिन लूथर था. जो जर्मनी का रहनेवाला था! इसने बाइबल का अनुवाद जर्मन भाषा में किया! धर्म-सुधार आन्दोलन की शुरुआत इंगलैड में हुई! जॉन विकलिफ को धर्म-सुधार आन्दोलन का प्रात: कालिन तारा कहा जाता है! इसके अनुयायी लोलार्डस कहलाते थे! अमरीका की खोज क्रिस्टोफर कोलम्बस ने की थी! अमेरिगो बेस्पुसी (इटली) के नाम पर अमेरिका का नाम अमेरिका पड़ा1 प्रशांत महासागर का नामकरण स्पेन निवासी मैगलन ने किया।
पुनर्जागरण के दौरान डच और जर्मन कलाकारों में हाल्वेन और एल्बर्ट ड्यूरर उल्लेखनीय हैं! उन्होंने शास्त्रीय साहित्य की अपेक्षा अपने आसपास दैनिक जीवन में अधिक रुचि प्रदर्शित की! जिससे वैज्ञानिक उपलब्धियों के क्षेत्र में जर्मनी इटली से भी आगे निकल गया!

तुर्क साम्राज्य/ उस्मानी साम्राज्य -
एशिया माइनर में सन् 1300 तक सेल्जुकों का पतन हो गया था। पश्चिम अनातोलिया में अर्तग्रुल एक तुर्क प्रधान था। एक समय जब वो एशिया माइनर की तरफ़ कूच कर रहा था तो उसने अपनी चार सौ घुड़सवारों की सेना को भाग्य की कसौटी पर आजमाया। उसने हारते हुए पक्ष का साथ दिया और युद्ध जीत लिया। उन्होंने जिनका साथ दिया वे सेल्जक थे। सेल्जक प्रधान ने अर्तग्रुल को उपहार स्वरूप एक छोटा-सा प्रदेश दिया। आर्तग्रुल के पुत्र उस्मान ने 1281 में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात प्रधान का पद हासिल किया। उसने 1299 में अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। यहीं से उस्मानी साम्राज्य की स्थापना हुई। उस्मानी साम्राज्य (1299 - 1923) (या ऑटोमन साम्राज्य या तुर्क साम्राज्य, उर्दू में सल्तनत-ए-उस्मानिया, उस्मानी तुर्क: دَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه) 1299 में पश्चिमोत्तर अनातोलिया में स्थापित एक एक तुर्क राज्य था। महमद द्वितीय द्वारा 1493 में कांस्टैंटिनोपुलजीतने के बाद यह एक साम्राज्य में बदल गया। प्रथम विश्वयुद्ध में 1919 में पराजित होने पर इसका विभाजन करके इस पर अधिकार कर लिया गया। स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के बाद 29 अक्तुबर सन् 1923 में तुर्की गणराज्य की स्थापना पर इसे समाप्त माना जाता है। उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह एशिया, यूरोपतथा उत्तरी अफ्रीका के हिस्सों में फैला हुआ था। मुराद द्वितीय के बेटे महमद द्वितीय ने राज्य और सेना का पुनर्गठन किया और 29 मई 1453 को कॉन्स्टेंटिनोपल जीत लिया। महमद ने रूढ़िवादी चर्च की स्वायत्तता बनाये रखी । बदले में चर्च ने उस्मानी प्रभुत्ता स्वीकार कर ली। चूँकि बाद के बैजेन्टाइन साम्राज्य और पश्चिमी यूरोप के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे इसलिए ज्यादातर रूढ़िवादी ईसाईयों ने विनिशिया के शासन के बजाय उस्मानी शासन को ज्यादा पसंद किया। पन्द्रहवीं और सोलवी शताब्दी में उस्मानी साम्राज्य का विस्तार हुआ। उस दौरान कई प्रतिबद्ध और प्रभावी सुल्तानों के शासन में साम्राज्य खूब फला फूला।
सुल्तान सलीम प्रथम (1512 - 1520) ने पूर्वी और दक्षिणी मोर्चों पर चल्द्रान की लड़ाई में फारस के सफाविद राजवंश के शाह इस्माइल को हराया। और इस तरह उसने नाटकीय रूप से साम्राज्य का विस्तार किया। उसने मिस्र में उस्मानी साम्राज्य स्थापित किया और लाल सागर में नौसेना खड़ी की। उस्मानी साम्राज्य के इस विस्तार के बाद पुर्तगाली और उस्मानी साम्राज्य के बीच उस इलाके की प्रमुख शक्ति बनने की होड़ लग गई। शानदार सुलेमान (1512-1566) ने 1521 में बेलग्रेड पर कब्ज़ा किया। उसने उस्मानी-हंगरी युद्धों में हंगरी राज्य के मध्य और दक्षिणी हिस्सों पर विजय प्राप्त की। 1526 की मोहैच की लड़ाई में एतिहासिक विजय प्राप्त करने के बाद उसने तुर्की का शासन आज के हंगरी (पश्चिमी हिस्सों को छोड़ कर) और अन्य मध्य यूरोपीय प्रदेशो में स्थापित किया। 1529 में उसने वियना पर चढाई की पर शहर को जीत पाने में असफल रहा। फ्रांस और उस्मानी साम्राज्य हैब्सबर्ग के शासन के विरोध में संगठित हुए और पक्के सहयोगी बन गए। फ्रांसिसियो ने 1543 में नीस पर और 1553 में कोर्सिका पर विजय प्राप्त की। ये जीत फ्रांसिसियो और तुर्को के संयुक्त प्रयासों का परिणाम थी जिसमे फ्रांसिसी राजा फ्रांसिस प्रथम और सुलेमान की सेनायों ने हिस्सा लिया था और जिसकी अगुवाई उस्मानी नौसेनाध्यक्षों बर्बरोस्सा हय्रेद्दीन पाशा और तुर्गुत रेइस ने की थी। 1543 में नीस पर कब्जे से एक महीने पहले फ्रांसिसियो ने उस्मानियो को सेना की एक टुकड़ी दे कर एस्तेर्गोम पर विजय प्राप्त करने में सहायता की थी। पिछली शताब्दी का असरदार सैनिक और नौकरशाही का तंत्र कमज़ोर सुल्तानों के एक दीर्घ दौर की वजह से दवाब में आ गया। धार्मिक और बौद्धिक रूढ़िवादिता की वजह से नवीन विचार दब गए जिससे उस्मानी लोग सैनिक प्रौद्योगिकी के मामले में यूरोपियो से पिछड़ गए। पर इस सब के बावजूद, साम्राज्य एक प्रमुख विस्तारवादी शक्ति बना रहा। विस्तार का ये दौर 1683 में वियना की लड़ाई तक बना रहा जिसके बाद यूरोप में उस्मानी साम्राज्य के विस्तार का दौर समाप्त हो गया। पश्चिमी यूरोप के प्रदेशों ने नए समुद्री व्यपारिक मार्गो की खोज कर ली जिससे वो उस्मानी व्यापार के एकाधिकार से बच गए। 1448 में पुर्तगालियों ने केप ऑफ गुड होप की खोज की। इसी के साथ हिन्द महासागर में चलने वाले उस्मानी और पुर्तगालियों के नौसनिक युद्धों के दौर का प्रारंभ हो गया। ये युद्ध पूरी सोलवी शताब्दी में चलते रहे। दक्षिणी यूरोप में स्पेन के फिलिप द्वितीय के नेतृत्व में एक कैथोलिक गठबंधन ने 1571 की लेपैंटो की लड़ाई में उस्मानी बेड़े के उपर विजय प्राप्त की। यह हार उस्मानियो के अजय होनी की छवि को एक शुरुआती (प्रतीकात्मक ही सही) झटका था। उस्मानियो को जहाजों के मुकाबले अनुभवी लोगो का ज्यादा नुकसान हुआ था।
पुनः अधिकार स्थापित करने के इस दौर का बड़ा विनाशकारी अंत हुआ जब महान तुर्की युद्ध (1683-1699) के दौरान मई 1683 में प्रधान वजीर कारा मुस्तफा पाशा ने एक विशाल सेना लेकर वियना की घेराबंदी की। आखिरी हमले में देरी की वजह से वियना की लड़ाई में हैब्सबर्ग, जर्मनी और पोलैंड की सयुंक्त सेनायों ने उस्मानी सेना को रोंद डाला। इस सयुंक्त सेना की अगुवाई पोलैंड का राजा जॉन तृतीय कर रहा था।  स्वीडन के राजा चार्ल्स बारहवें को 1709 में पोल्टावा की लड़ाई (1700-1721 के महान उत्तरी युद्ध का हिस्सा।) में रूस द्वारा हार के बाद ओटोमन साम्राज्य में एक सहयोगी के रूप में स्वागत किया गया। चार्ल्स बारहवें ने रूस पर युद्ध की घोषणा करने को तुर्क सुल्तान अहमद तृतीय को राजी कर लिया, जिसके परिणत 1710-1711 की पृथ नदी अभियान में तुर्को की जीत हुई। 1716-1718 के ऑस्ट्रो-तुर्की युद्ध के बाद पैसरोविच की संधि ने बनत, सर्बिया और "लिटिल वलाकिया" (ऑल्टेनिआ) को ऑस्ट्रिया को देने की पुष्टि की। इस संधि से ये पता चला कि उस्मानी साम्राज्य बचाव की मुद्रा में है और यूरोप में इसके द्वारा कोई भी आक्रामकता पेश करने की संभावना नहीं है।
तुर्क के जीवन में नई घटनाएं जी आर साम्राज्य की आर्थिक संरचना में उनकी भूमिका के शब्दों में के बारे में एक परिवर्तन की ओ डी। हालांकि शहरों में खुद को ग्रामीण लोगों की आमद की वजह से विकसित करने के लिए जारी रखा, वे कम करने के लिए शुरू किया फलस्वरूप का अनुपात कम कर देता है जो अपने विशेषाधिकार प्राप्त की स्थिति, शहरी निर्माण के लिए बनाया गया अधिशेष उत्पाद, और बागवानी, कारीगर, कलाकारों, कवियों और जन सेवकों के रखरखाव तुर्क अभिजात वर्ग। Craftwork हालांकि एक निश्चित पहुंच गया पिछली अवधि के साथ तुलना में प्रगति है, लेकिन निश्चित रूप से हीन यूरोपीय उद्योग की तकनीक के स्तर पर।  अठारहवीं शताब्दी के दौरान। Janissary में शरीर काफी बदलाव आए। अब खुद को सुल्तानों निर्भर हो गया Janissaries की। पारंपरिक उपहार है कि करने के लिए अपने परिग्रहण पर हर सुल्तान Janissaries के सिंहासन के लिए उपहार, एक अनिवार्य श्रद्धांजलि में हुई। अब के रूप में अगर सुल्तान सिंहासन के अधिकार खरीदे ... Janissaries Praetorian रक्षक बन गया। वे लगातार कर रहे हैं अक्सर, coups मंचन अप्रिय विजीरों और सुल्तानों फिसल घरेलू या यहां तक ​​कि विदेशी साज़िश का एक साधन बन जाता है।

काली मौत : यूरोप के इतिहास का एक अध्याय -
प्लेग (Plague) संसार की सबसे पुरानी महामारियों में है। इसे ताऊन, ब्लैक डेथ, पेस्ट आदि नाम भी दिए गए हैं। मुख्य रूप से यह कृतंक (rodent) प्राणियों (प्राय: चूहे) का रोग है, जो पास्चुरेला पेस्टिस नामक जीवणु द्वारा उत्पन्न होता है। आदमी को यह रोग प्रत्यक्ष संसर्ग अथवा पिस्सू के दंश से लगता है। यह तीव्र गति से बढ़ता है, बुखार तेज और लसीका ग्रंथियाँ स्पर्शासह्य एवं सूजी होती हैं, रक्तपुतिता की प्रवृत्ति होती है और कभी-कभी यह न्यूमोनिया का रूप धारण करता है।  वैसिलस पेस्टिस (पास्चुरेला पेस्टिस) की खोज सन् 1894 में हांगकांग के किटा साटो और यर्सिन ने की। आगे के अनुसंधानों ने सिद्ध किया कि यह मुख्यत: कृंतक प्राणियों का रोग है। पहलेचूहे मरते हैं तब आदमी को रोग लगता है। प्लेग के जीवाणु सरलता से संवर्धनीय है और गिनीपिग (guinea pig) तथा अन्य प्रायोगिक पशुओं में रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
प्लेग भूमध्य रेखा के अत्यंत उष्ण प्रदेश को छोड़कर संसार के किसी भी प्रदेश में हो सकता है। कोई भी जाति, या आयु का नरनारी इससे बचा नहीं है। प्लेग हमारे देश में पहले मूस (Rattus norvegicus) को होता है। इससे चूहों (Rattus rattus) को लगता है। पिस्सू (जिनापसेल्ला चियोपिस) इन कृंतकों का रक्तपान करता है। जब चूहे मरते हैं तो प्लेग के जीवाणुओं से भरे पिस्सू चूहे को छोड़कर आदमी की ओर दौड़ते हैं। जब आदमी को पिस्सू काटते हैं, तो दंश में आपने अंदर भरा संक्रामक द्रव्य रक्त में उगल देते हैं। चूहों का मरना आरंभ होने के दो तीन सप्ताह बाद मनुष्यों में प्लेग फैलता है। प्राचीन काल में किसी भी महामारी को प्लेग कहते थे। यह रोग कितना पुराना है इसका अंदाज इससे किया जा सकता है कि एफीरस के रूफुस ने, जो ट्रॉजन युग का चिकित्सक था, "प्लेग के ब्यूबों" का जिक्र किया है और लिखा है कि यह घातम रोग मिस्त्र, लीबिया और सीरिया में पाया जाता है। "बुक ऑव सैमुअल" में इसका उल्लेख है। ईसा पूर्व युग में 41 महामारियों के अभिलेख मिलते हैं। ईसा के समय से सन् 1500 तक 109 बढ़ी महामारियाँ हुईं, जिनमें 14वीं शताब्दी की "ब्लैक डेथ" प्रसिद्ध है। सन् 1500 से 1720 तक विश्वव्यापी महामारियाँ (epidemics) फैलीं। फिर 18वीं और 19वीं शताब्दी में शांति रही। सिर्फ एशिया में छिटफुट आक्रमण होते रहे। तब सन् 1894 में हांगकांग में इसने सिर उठाया और जापान, भारत, तुर्की होते हुए सन् 1896 में यह रोग रूस जा पहुँचा, सन् 1898 में अरब, फारस, ऑस्ट्रिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमरीका और हवाई द्वीप तथा सन् 1900 में इंग्लैंड, अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में इसने तांडव किया। सन् 1898 से 1918 तक भारत में इसने एक करोड़ प्राणों की बलि ली। अब पुन: संसार में शांति है, केवल छिटपुट आक्रमण के समाचार मिलते हैं।
प्लेग महामारियों के चक्र चलाते रहे हैं। छठी शताब्दी में पचास वर्षों तक यूरोप में इसका एक दौर चला। समूचे रोमन साम्राज्य में प्लेग बदंरगाहों से आरंभ होकर दूरवर्ती नगरों की ओर फैला था। सातवीं शताब्दी में 664 से 680 तक फैली महामारियाँ, जिनका उल्लेख बेडे ने किया है, शायद प्लेग ही थी। 14वीं शताब्दी में "काली मौत" के नए दौर आरंभ हुए, जिनमें मृत्युसंख्या भयावह थी। प्रथम दौर में अनेक नगरों की दो तिहाई से तीन चौथाई आबादी तक साफ हो गई। कहते हैं, इस चक्र में यूरोप में ढाई करोड़ (अर्थात् कुल आबादी के चौथाई) व्यक्ति मर गए। 1664-65 में इतिहासप्रसिद्ध "ग्रेट प्लेग" का लंदन नगर पर आक्रमण हुआ। सन् 1675 से 1684 तक उत्तरी अफ्रीका, तुर्की, पोलैंड, हंगरी, जर्मनी, आस्ट्रिया में प्लेग का एक नया उत्तराभिमुख दौरा हुआ, जिसमें सन् 1675 में माल्टा में 11,000 सन् 1679 में विएना में 76,000 और सन् 1681 में प्राग में 83,000 प्राणों की आहुति पड़ी। इस चक्र की भीषणता की कल्पना इससे की जा सकती है कि 10,000 की आबादीवाले ड्रेस्डेन नगर में 4,397 नागरिक इसके शिकार हो गए।
सन् 1833 से 1845 तक मिस्त्र में प्लेग का तांडव होता रहा। पर इसी समय यूरोप में विज्ञान का सूर्योदय हो रहा था और मिस्त्र के प्लेग का प्रथम बार अध्ययन किया गया। फ्रेंच वैज्ञानिकों ने बताया कि वास्तव में जितना बताया जाता है यह उतना संक्रामक नहीं है। आज रोकथाम के लिए प्लेग का टीका सक्षम है। प्लेग की सवारी जीवाणु, पिस्सू और चूहे के त्रिकोण पर बैठकर चलती है और जीवावसादक से जीवाणु, कीटनाशक (10ऽ डी.डी.टी.) से पिस्सू और चूहा विनाशक उपायों से चूहों को मारकर प्लेग का उन्मूलन संभव है। जीवावसादकों में स्ट्रेप्टोमाइसिन तथा सल्फा औषधियों में सल्फाडाज़ीन और सल्फामेराज़ीन इनके विरुद्ध कारगर है। आधुनिक चिकित्सा ने प्लेग की घातकता नष्टप्राय कर दी है।

मंगोल साम्राज्य -
मंगोल छोटी आँख, पीली चमड़ी वाली एक जाति, जिसके दाढ़ी-मूँछ बहुत कम होती है। मंगोल लोग प्राय: खानाबदोश थे। ये खानाबदोश मर्द और औरतें बड़े मज़बूत कद-काठी के लोग थे। शहरी जन-जीवन इन्हें रास नहीं आता था। चंगेज़ ख़ाँ जैसा वीर, प्रतापी और महान नेता मंगोल इतिहास में शायद ही हुआ है। बाबर ने अपने वंश को भारत में मुग़ल प्रसिद्ध किया था। मंगोल साम्राज्य 13 वीं और 14 वीं शताब्दियों के दौरान एक विशाल साम्राज्य था। मध्य एशिया में शुरू यह राज्य अंततः पूर्व मेंयूरोप से लेकर पश्चिम में जापान के सागर तक और उत्तर में साइबेरिया से लेकर दक्षिण में भारतीय उपमहाद्वीप तक फैल गया।
आमतौर पर इसे दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा सन्निहित साम्राज्य माना जाना जाता है। अपने शीर्ष पर यह 6000 मील (9700 किमी) तक फैला था और 33,000,000 वर्ग कि.मी. (12,741,000 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता था। इस समय पृथ्वी के कुल भू क्षेत्रफल का 22% हिस्सा इसके कब्ज़े में था और इसकी आबादी 100 करोड़ थी। मंगोल शासक पहले बौद्ध थे, लेकिन बाद मे तुर्को के सम्पर्क में आकर उन्होंने इस्लाम को अपना लिया। मंगोलों के कई समूह विविध समयों में भारत में आये और उनमें से कुछ यहीं पर बस गए। चंगेज़ ख़ाँ, जिसके भारत पर आक्रमण करने का ख़तरा 1211 ई. में उत्पन्न हो गया था, वह एक मंगोल था। इसी प्रकार से तैमूरभी, जिसने भारत पर 1398 ई. में हमला किया, वह भी एक मंगोल था। चंगेज ख़ाँ और उसके अनुयायी मुसलमान नहीं थे, किन्तु तैमूर और उसके अनुयायी मुसलमान हो गए थे। 'मंगोल लोग ही मुसलमान बनने के बाद 'मुग़ल' कहलाने लगे।' 1211 ई. में चंगेज ख़ाँ तो सिन्धु नदी से वापस लौट गया, किन्तु उसके बाद मंगोलों ने और कई आक्रमण भारत पर किए। दिल्ली के बलबन और अलाउद्दीन ख़िलजी जैसे शक्तिशाली सुल्तानों को भी मंगोलों का आक्रमण रोकने में एड़ी-चोट का पसीना एक कर देना पड़ा। 
 इसमें कोई शक नहीं कि इतिहास में चंगेज़ जैसा महान और प्रतिभा वाला सैनिक नेता दूसरा कोई नहीं हुआ है। सिकन्दर और सीजर इसके सामने नाचीज़ नज़र आते हैं। चंगेज़ न सिर्फ़ खुद बहुत बड़ा सिपहसलार था, बल्कि उसने अपने बहुत से फ़ौजी अफ़सरों को तालीम देकर होशियार नायक बना दिया था। अपने वतन से हज़ारों मील दूर होते हुए भी दुश्मनों और विरोधी जनता से घिरे रहते हुए भी वे अपने से ज़्यादा तादाद की फ़ौजों से लड़कर उन पर विजय प्राप्त करते थे।

रोमन साम्राज्य -
रोमन साम्राज्य (27 ई.पू.–476 (पश्चिम); 1453 (पूर्व)) यूरोप के रोम नगर में केन्द्रित एक साम्राज्य था। इस साम्राज्य का विस्तार पूरे दक्षिणी यूरोप के अलावे उत्तरी अफ्रीका और अनातोलिया के क्षेत्र थे। फारसी साम्राज्य इसका प्रतिद्वंदी था जो फ़ुरात नदी के पूर्व में स्थित था। यह विश्व के सबसे विशाल साम्राज्यों में से एक था। यूँ तो पाँचवी सदी के अन्त तक इस साम्राज्य का पतन हो गया था और इस्तांबुल (कॉन्स्टेन्टिनोपल) इसके पूर्वी शाखा की राजधानी बन गई थी पर सन् 1453 में उस्मानों (ऑटोमन तुर्क) ने इसपर भी अधिकार कर लिया था।
रोमन साम्राज्य रोमन गणतंत्र का परवर्ती था। ऑक्टेवियन ने जूलियस सीज़र के सभी संतानों को मार दिया तथा इसके अलावा उसने मार्क एन्टोनी को भी हराया जिसके बाद मार्क ने खुदकुशी कर ली। इसके बाद ऑक्टेवियन को रोमन सीनेट ने ऑगस्टस का नाम दिया। वह ऑगस्टस सीज़र के नाम से सत्तारूढ़ हुआ। इसके बाद सीज़र नाम एक पारिवारिक उपनाम से बढ़कर एक पदवी स्वरूप नाम बन गया। इससे निकले शब्द ज़ार (रूस में) और कैज़र (जर्मन और तुर्क) आज भी विद्यमान हैं। गृहयुद्धों के कारण रामन प्रातों (लीजन) की संख्या 50 से घटकर 28 तक आ गई थी। जिस प्रांत की वफ़ादारी पर शक था उन्हें साम्राज्य से सीधे निकाल दिया गया।
डैन्यूब और एल्बे नदी पर अपनी सीमा को तय करने के लिए ऑक्टेवियन (ऑगस्टस) ने इल्लीरिया, मोएसिया, पैन्नोनिया और जर्मेनिया पर चढ़ाई के आदेश दिए। उसके प्रयासों से राइन और डैन्यूब नदियाँ उत्तर में उसके साम्राज्यों की सीमा बन गईं। ऑगस्टस के बाद टाइबेरियस सत्तारूढ़ हुआ। वह जूलियस की तीसरी पत्नी की पहली शादी से हुआ पुत्र था। उसका शासन शांतिपूर्ण रहा। इसके बाद कैलिगुला आया जिसकी सन् 41 में हत्या कर दी गई। परिवार का एक मात्र वारिस क्लाउडियस शासक बना। सन् 43 में उसने ब्रिटेन (दक्षिणार्ध) को रोमन उपनिवेश बना दिया। इसके बाद नीरो का शासन आया जिसने सन 58-63 के बीच पार्थियनों (फारसी साम्राज्य) के साथ सफलता पूर्वक शांति समझौता कर लिया। वह रोम में लगी एक आग के कारण प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि सन् 64 में जब रोम आग में जल रहा था तो वह वंशी बजाने में व्यस्त था। सन् 68 में उसे आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा। सन् 68-69 तक रोम में अराजकता छाई रही और गृहयुद्ध हुए। सन् 69-96 तक फ्लाव वंश का शासन आया। पहले शासक वेस्पेसियन ने स्पेन में कई सुधार कार्यक्रम चलाए। उसने कोलोसियम (एम्फीथियेटरम् फ्लावियन) के निर्माण की आधारशिला भी रखी।
रोमन साम्राज्य  के शासक -
ऑगस्टस सीजर (27 ईसापूर्व - 14 इस्वी)
टाइबेरियस (14-37)
केलिगुला (37-41)
क्लॉडिअस (41-54)
नीरो (54-68)
फ़्लावी वंश (69-96)
नेर्वा (96-98)
ट्राजन (98-117)
हैड्रियन (117-138)
एन्टोनियो पिएस
मार्कस ऑरेलियस (161-180)
कॉमोडोस (180-192)
सेवेरन वंश (193-235)
कॉन्सेन्टाइन वंश (305-363)
वेलेंटाइनियन वंश (364-392)
थियोडोसियन वंश (379-457)
पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन - (395-476)
पूर्वी रोमन साम्राज्य (393-1453)

सन् 96-180 के काल को पाँच अच्छे सम्राटों का काल कहा जाता है। इस समय के राजाओं ने साम्राज्य में शांतिपूर्ण ढंग से शासन किया। पूर्व में पार्थियन साम्राज्य से भी शांतिपूर्ण सम्बन्ध रहे। हँलांकि फारसियों से अर्मेनिया तथा मेसोपोटामिया में उनके युद्ध हुए पर उनकी विजय और शांति समझौतों से साम्राज्य का विस्तार बना रहा। सन् 180 में कॉमोडोस जो मार्कस ऑरेलियस सा बेटा था शासक बना। उसका शासन पहले तो शांतिपूर्ण रहा पर बाद में उसके खिलाफ़ विद्रोह और हत्या के प्रयत्न हुए। इससे वह भयभीत और इसके कारम अत्याचारी बनता गया। सेरेवन वंश के समय रोम के सभी प्रातवासियों को रोमन नागरिकता दे दी गई। सन् 235 तक यह वंश समाप्त हो गया। इसके बाद रोम के इतिहास में संकट का काल आया। पूरब में फारसी साम्राज्य शक्तिशाली होता जा रहा था। साम्राज्य के अन्दर भी गृहयुद्ध की सी स्थिति आ गई थी। सन् 305 में कॉन्स्टेंटाइन का शासन आया। इसी वंश के शासनकाल में रोमन साम्राज्य विभाजित हो गया। सन् 360 में इस साम्राज्य के पतन के बाद साम्राज्य धीरे धीरे कमजोर होता गया। पाँचवीं सदी तक साम्राज्य का पतन होने लगा और पूर्वी रोमन साम्राज्य पूर्व में सन् 1453 तक बना रहा।

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